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سورة الليل - सूरह अल-लैल

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آیت

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آیت : 1
وَٱلَّيۡلِ إِذَا يَغۡشَىٰ
रात की क़सम, जब वह छा जाए।
آیت : 2
وَٱلنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّىٰ
और दिन की क़सम, जब वह रौशन हो जाए!
آیت : 3
وَمَا خَلَقَ ٱلذَّكَرَ وَٱلۡأُنثَىٰٓ
तथा नर और मादा को पैदा करने की क़सम।
آیت : 4
إِنَّ سَعۡيَكُمۡ لَشَتَّىٰ
निःसंदेह तुम्हारे प्रयास विविध हैं।[1]
1. (1-4) इन आयतों का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार रात-दिन तथा नर-मादा (स्त्री-पुरुष) भिन्न हैं, और उनके लक्षण और प्रभाव भी भिन्न हैं, इसी प्रकार मानवजाति (इनसान) के विश्वास, कर्म भी दो भिन्न प्रकार के हैं। और दोनों के प्रभाव और परिणाम भी विभिन्न हैं।
آیت : 5
فَأَمَّا مَنۡ أَعۡطَىٰ وَٱتَّقَىٰ
फिर जिसने (दान) दिया और (अवज्ञा से) बचा।
آیت : 6
وَصَدَّقَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ
और सबसे अच्छी बात को सत्य माना।
آیت : 7
فَسَنُيَسِّرُهُۥ لِلۡيُسۡرَىٰ
तो निश्चय हम उसके लिए भलाई को आसान कर देंगे।
آیت : 8
وَأَمَّا مَنۢ بَخِلَ وَٱسۡتَغۡنَىٰ
लेकिन वह (व्यक्ति) जिसने कंजूसी की और बेपरवाही बरती।
آیت : 9
وَكَذَّبَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ
और सबसे अच्छी बात को झुठलाया।
آیت : 10
فَسَنُيَسِّرُهُۥ لِلۡعُسۡرَىٰ
तो हम उसके लिए कठिनाई (बुराई का मार्ग) आसान कर देंगे।[2]
2. (5-10) इन आयतों में दोनों भिन्न कर्मों के प्रभाव का वर्णन है कि कोई अपना धन भलाई में लगाता है तथा अल्लाह से डरता है और भलाई को मानता है। सत्य आस्था, स्वभाव और सत्कर्म का पालन करता है। जिसका प्रभाव यह होता है कि अल्लाह उसके लिए सत्कर्मों का मार्ग सरल कर देता है। और उसमें पाप करने तथा स्वार्थ के लिए अवैध धन अर्जन की भावना नहीं रह जाती। ऐसे व्यक्ति के लिए दोनों लोक में सुख है। दूसरा वह होता है जो धन का लोभी, तथा अल्लाह से निश्न्तचिंत होता है और भलाई को नहीं मानता। जिसका प्रभाव यह होता है कि उसका स्वभाव ऐसा बन जाता है कि उसे बुराई का मार्ग सरल लगने लगता है। तथा अपने स्वार्थ और मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रयास करता है। फिर इस बात को इस वाक्य पर समाप्त कर दिया गया है कि धन के लिए वह जान देता है, परंतु वह उसे अपने साथ लेकर नहीं जाएगा। फिर वह उसके किस काम आएगा?
آیت : 11
وَمَا يُغۡنِي عَنۡهُ مَالُهُۥٓ إِذَا تَرَدَّىٰٓ
और जब वह (जहन्नम के गड्ढे में) गिरेगा, तो उसका धन उसके किसी काम नहीं आएगा।
آیت : 12
إِنَّ عَلَيۡنَا لَلۡهُدَىٰ
निःसंदेह हमारा ही ज़िम्मे मार्ग दिखाना है।
آیت : 13
وَإِنَّ لَنَا لَلۡأٓخِرَةَ وَٱلۡأُولَىٰ
निःसंदेह हमारे ही अधिकार में आख़िरत और दुनिया है।
آیت : 14
فَأَنذَرۡتُكُمۡ نَارٗا تَلَظَّىٰ
अतः मैंने तुम्हें भड़कती आग से सावधान कर दिया है।[3]
3. (11-14) इन आयतों में मानवजाति (इनसान) को सावधान किया गया है कि अल्लाह का, दया और न्याय के कारण मात्र यह दायित्व था कि सत्य मार्ग दिखा दे। और क़ुरआन द्वारा उसने अपना यह दायित्व पूरा कर दिया। किसी को सत्य मार्ग पर लगा देना उसका दायित्व नहीं है। अब इस सीधी राह को अपनाओगे तो तुम्हारा ही भला होगा। अन्यथा याद रखो कि संसार और परलोक दोनों ही अल्लाह के अधिकार में हैं। न यहाँ कोई तुम्हें बचा सकता है, और न वहाँ कोई तुम्हारा सहायक होगा।

آیت : 15
لَا يَصۡلَىٰهَآ إِلَّا ٱلۡأَشۡقَى
जिसमें केवल सबसे बड़ा अभागा ही प्रवेश करेगा।
آیت : 16
ٱلَّذِي كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ
जिसने झुठलाया तथा मुँह फेरा।
آیت : 17
وَسَيُجَنَّبُهَا ٱلۡأَتۡقَى
और उससे उस व्यक्ति को बचा लिया जाएगा, जो सबसे ज़्यादा परहेज़गार है।
آیت : 18
ٱلَّذِي يُؤۡتِي مَالَهُۥ يَتَزَكَّىٰ
जो अपना धन देता है, ताकि वह पवित्र हो जाए।
آیت : 19
وَمَا لِأَحَدٍ عِندَهُۥ مِن نِّعۡمَةٖ تُجۡزَىٰٓ
और उसपर किसी का कोई उपकार नहीं है, जिसका बदला चुकाया जाए।
آیت : 20
إِلَّا ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ رَبِّهِ ٱلۡأَعۡلَىٰ
वह तो केवल अपने सर्वोच्च रब का चेहरा चाहता है।
آیت : 21
وَلَسَوۡفَ يَرۡضَىٰ
और निश्चय वह (बंदा) प्रसन्न हो जाएगा।[4]
4. (15-21) इन आयतों में यह वर्णन किया गया है कि कौन से कुकर्मी नरक में पड़ेंगे और कौन सुकर्मी उससे सुरक्षित रखे जाएँगे। और उन्हें क्या फल मिलेगा। आयत संख्या 10 के बारे में यह बात याद रखने की है कि अल्लाह ने सभी वस्तुओं और कर्मों का अपने नियमानुसार स्वभाविक प्रभाव रखा है। और क़ुरआन इसीलिए सभी कर्मों के स्वभाविक प्रभाव और फल को अल्लाह से जोड़ता है। और यूँ कहता है कि अल्लाह ने उसके लिए बुराई की राह सरल कर दी। कभी कहता है कि उनके दिलों पर मुहर लगा दी, जिसका अर्थ यह होता है कि यह अल्लाह के बनाए हुए नियमों के विरोध का स्वभाविक फल है। (देखिए : उम्मुल किताब, मौलाना आज़ाद)
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