آیت :
1
عَبَسَ وَتَوَلَّىٰٓ
उस (नबी) ने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया।
آیت :
2
أَن جَآءَهُ ٱلۡأَعۡمَىٰ
इस कारण कि उनके पास अंधा आया।
آیت :
3
وَمَا يُدۡرِيكَ لَعَلَّهُۥ يَزَّكَّىٰٓ
और आपको क्या मालूम शायद वह पवित्रता प्राप्त कर ले।
آیت :
4
أَوۡ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ ٱلذِّكۡرَىٰٓ
या नसीहत ग्रहण करे, तो वह नसीहत उसे लाभ दे।
آیت :
5
أَمَّا مَنِ ٱسۡتَغۡنَىٰ
लेकिन जो बेपरवाह हो गया।
آیت :
6
فَأَنتَ لَهُۥ تَصَدَّىٰ
तो आप उसके पीछे पड़ रहे हैं।
آیت :
7
وَمَا عَلَيۡكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ
हालाँकि आपपर कोई दोष नहीं कि वह पवित्रता ग्रहण नहीं करता।
آیت :
8
وَأَمَّا مَن جَآءَكَ يَسۡعَىٰ
लेकिन जो व्यक्ति आपके पास दौड़ता हुआ आया।
آیت :
9
وَهُوَ يَخۡشَىٰ
और वह डर (भी) रहा है।
آیت :
10
فَأَنتَ عَنۡهُ تَلَهَّىٰ
तो आप उसकी ओर ध्यान नहीं देते।[1]
آیت :
11
كَلَّآ إِنَّهَا تَذۡكِرَةٞ
ऐसा हरगिज़ नहीं चाहिए, यह (क़ुरआन) तो एक उपदेश है।
آیت :
12
فَمَن شَآءَ ذَكَرَهُۥ
अतः जो चाहे, उसे याद करे।
آیت :
13
فِي صُحُفٖ مُّكَرَّمَةٖ
(यह क़ुरआन) सम्मानित सहीफ़ों (ग्रंथों) में है।
آیت :
14
مَّرۡفُوعَةٖ مُّطَهَّرَةِۭ
जो उच्च स्थान वाले तथा पवित्र हैं।
آیت :
15
بِأَيۡدِي سَفَرَةٖ
ऐसे लिखने वालों (फ़रिश्तों) के हाथों में हैं।
آیت :
16
كِرَامِۭ بَرَرَةٖ
जो माननीय और नेक हैं।[2]
آیت :
17
قُتِلَ ٱلۡإِنسَٰنُ مَآ أَكۡفَرَهُۥ
सर्वनाश हो मनुष्य का, वह कितना कृतघ्न (नाशुक्रा) है।
آیت :
18
مِنۡ أَيِّ شَيۡءٍ خَلَقَهُۥ
(अल्लाह ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया?
آیت :
19
مِن نُّطۡفَةٍ خَلَقَهُۥ فَقَدَّرَهُۥ
एक नुत्फ़े (वीर्य) से उसे पैदा किया, फिर विभिन्न चरणों में उसकी रचना की।
آیت :
20
ثُمَّ ٱلسَّبِيلَ يَسَّرَهُۥ
फिर उसके लिए रास्ता आसान कर दिया।
آیت :
21
ثُمَّ أَمَاتَهُۥ فَأَقۡبَرَهُۥ
फिर उसे मृत्यु दी, फिर उसे क़ब्र में रखवाया।
آیت :
22
ثُمَّ إِذَا شَآءَ أَنشَرَهُۥ
फिर जब वह चाहेगा, उसे उठाएगा।
آیت :
23
كَلَّا لَمَّا يَقۡضِ مَآ أَمَرَهُۥ
हरगिज़ नहीं, अभी तक उसने उसे पूरा नहीं किया, जिसका अल्लाह ने उसे आदेश दिया था।[3]
آیت :
24
فَلۡيَنظُرِ ٱلۡإِنسَٰنُ إِلَىٰ طَعَامِهِۦٓ
अतः इनसान को चाहिए कि अपने भोजन को देखे।
آیت :
25
أَنَّا صَبَبۡنَا ٱلۡمَآءَ صَبّٗا
कि हमने ख़ूब पानी बरसाया।
آیت :
26
ثُمَّ شَقَقۡنَا ٱلۡأَرۡضَ شَقّٗا
फिर हमने धरती को विशेष रूप से फाड़ा।
آیت :
27
فَأَنۢبَتۡنَا فِيهَا حَبّٗا
फिर हमने उसमें अनाज उगाया।
آیت :
28
وَعِنَبٗا وَقَضۡبٗا
तथा अंगूर और (मवेशियों का) चारा।
آیت :
29
وَزَيۡتُونٗا وَنَخۡلٗا
तथा ज़ैतून और खजूर के पेड़।
آیت :
30
وَحَدَآئِقَ غُلۡبٗا
तथा घने बाग़।
آیت :
31
وَفَٰكِهَةٗ وَأَبّٗا
तथा फल और चारा।
آیت :
32
مَّتَٰعٗا لَّكُمۡ وَلِأَنۡعَٰمِكُمۡ
तुम्हारे लिए तथा तुम्हारे पशुओं के लिए जीवन-सामग्री के रूप में।[4]
آیت :
33
فَإِذَا جَآءَتِ ٱلصَّآخَّةُ
तो जब कानों को बहरा कर देने वाली प्रचंड आवाज़ (क़ियामत) आ जाएगी।
آیت :
34
يَوۡمَ يَفِرُّ ٱلۡمَرۡءُ مِنۡ أَخِيهِ
जिस दिन इनसान अपने भाई से भागेगा।
آیت :
35
وَأُمِّهِۦ وَأَبِيهِ
तथा अपनी माता और अपने पिता (से)।
آیت :
36
وَصَٰحِبَتِهِۦ وَبَنِيهِ
तथा अपनी पत्नी और अपने बेटों से।
آیت :
37
لِكُلِّ ٱمۡرِيٕٖ مِّنۡهُمۡ يَوۡمَئِذٖ شَأۡنٞ يُغۡنِيهِ
उस दिन उनमें से प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी स्थिति होगी, जो उसे (दूसरों से) बेपरवाह कर देगी।
آیت :
38
وُجُوهٞ يَوۡمَئِذٖ مُّسۡفِرَةٞ
उस दिन कुछ चेहरे रौशन होंगे।
آیت :
39
ضَاحِكَةٞ مُّسۡتَبۡشِرَةٞ
हँसते हुए, प्रसन्न होंगे।
آیت :
40
وَوُجُوهٞ يَوۡمَئِذٍ عَلَيۡهَا غَبَرَةٞ
तथा कुछ चेहरों उस दिन धूल से ग्रस्त होंगे।
آیت :
41
تَرۡهَقُهَا قَتَرَةٌ
उनपर कालिमा छाई होगी।
آیت :
42
أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡكَفَرَةُ ٱلۡفَجَرَةُ
वही काफ़िर और कुकर्मी लोग हैं।[5]