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سورة المعارج - सूरह अल-मआरिज

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آیت

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آیت : 1
سَأَلَ سَآئِلُۢ بِعَذَابٖ وَاقِعٖ
एक माँगने वाले[1] ने वह यातना माँगी, जो घटित होने वाली है।
1. कहा जाता है नज़्र पुत्र ह़ारिस अथवा अबू जह्ल ने यह माँग की थी कि "ऐ अल्लाह! यदि यह सत्य है तेरी ओर से तो तू हमपर आकाश से पत्थर बरसा दे।" (देखिए : सूरतुल-अन्फाल, आयतः 32)
آیت : 2
لِّلۡكَٰفِرِينَ لَيۡسَ لَهُۥ دَافِعٞ
काफ़िरों पर। उसे कोई टालने वाला नहीं।
آیت : 3
مِّنَ ٱللَّهِ ذِي ٱلۡمَعَارِجِ
ऊँचाइयों वाले अल्लाह की ओर से।
آیت : 4
تَعۡرُجُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ وَٱلرُّوحُ إِلَيۡهِ فِي يَوۡمٖ كَانَ مِقۡدَارُهُۥ خَمۡسِينَ أَلۡفَ سَنَةٖ
फ़रिश्ते और रूह[2] उसकी ओर चढ़ेंगे, एक ऐसे दिन में जिसकी मात्रा पचास हज़ार वर्ष है।
2. रूह़ से अभिप्राय फ़रिश्ता जिबरील (अलैहिस्सलाम) हैं।
آیت : 5
فَٱصۡبِرۡ صَبۡرٗا جَمِيلًا
अतः (ऐ नबी!) आप अच्छे धैर्य से काम लें।
آیت : 6
إِنَّهُمۡ يَرَوۡنَهُۥ بَعِيدٗا
निःसंदेह वे उसे दूर समझ रहे हैं।
آیت : 7
وَنَرَىٰهُ قَرِيبٗا
और हम उसे निकट देख रहे हैं।
آیت : 8
يَوۡمَ تَكُونُ ٱلسَّمَآءُ كَٱلۡمُهۡلِ
जिस दिन आकाश पिघली हुई धातु के समान हो जाएगा।
آیت : 9
وَتَكُونُ ٱلۡجِبَالُ كَٱلۡعِهۡنِ
और पर्वत धुने हुए ऊन के समान हो जाएँगे।[3]
3. देखिए : सूरतुल-क़ारिआ।
آیت : 10
وَلَا يَسۡـَٔلُ حَمِيمٌ حَمِيمٗا
और कोई मित्र किसी मित्र को नहीं पूछेगा।

آیت : 11
يُبَصَّرُونَهُمۡۚ يَوَدُّ ٱلۡمُجۡرِمُ لَوۡ يَفۡتَدِي مِنۡ عَذَابِ يَوۡمِئِذِۭ بِبَنِيهِ
हालाँकि वे उन्हें दिखाए जा रहे होंगे। अपराधी चाहेगा कि काश उस दिन की यातना से बचने के लिए छुड़ौती में दे दे अपने बेटों को।
آیت : 12
وَصَٰحِبَتِهِۦ وَأَخِيهِ
तथा अपनी पत्नी और अपने भाई को।
آیت : 13
وَفَصِيلَتِهِ ٱلَّتِي تُـٔۡوِيهِ
तथा अपने परिवार (कुटुंब) को, जो उसे शरण देता था।
آیت : 14
وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا ثُمَّ يُنجِيهِ
और उन सभी लोगों[4] को जो धरती में हैं। फिर अपने आपको बचा ले।
4. ह़दीस में है कि जिस नारकी को सबसे सरल यातना दी जाएगी, उससे अल्लाह कहेगा : क्या धरती का सब कुछ तुम्हें मिल जाए तो उसे इसके दंड में दे दोगे? वह कहेगा : हाँ। अल्लाह कहेगा : तुम आदम की पीठ में थे, तो मैंने तुमसे इससे सरल की माँग की थी कि मेरा किसी को साझी न बनाना, पर तुमने इनकार किया और शिर्क किया। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6557, सह़ीह़ मुस्लिम : 2805)
آیت : 15
كَلَّآۖ إِنَّهَا لَظَىٰ
कदापि नहीं! निःसंदेह वह (जहन्नम) भड़कने वाली आग है।
آیت : 16
نَزَّاعَةٗ لِّلشَّوَىٰ
जो खाल उधेड़ देने वाली है।
آیت : 17
تَدۡعُواْ مَنۡ أَدۡبَرَ وَتَوَلَّىٰ
वह उसे पुकारेगी, जिसने पीठ फेरी[5] और मुँह मोड़ा।
5. अर्थात सत्य से।
آیت : 18
وَجَمَعَ فَأَوۡعَىٰٓ
तथा (धन) एकत्र किया और संभाल कर रखा।
آیت : 19
۞ إِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ خُلِقَ هَلُوعًا
निःसंदेह मनुष्य बहुत अधीर बनाया गया है।
آیت : 20
إِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ جَزُوعٗا
जब उसे कष्ट पहुँचता है, तो बहुत घबरा जाने वाला है।
آیت : 21
وَإِذَا مَسَّهُ ٱلۡخَيۡرُ مَنُوعًا
और जब उसे भलाई मिलती है, तो बहुत रोकने वाला है।
آیت : 22
إِلَّا ٱلۡمُصَلِّينَ
सिवाय नमाज़ियों के।
آیت : 23
ٱلَّذِينَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَاتِهِمۡ دَآئِمُونَ
जो हमेशा अपनी नमाज़ों की पाबंदी करते हैं।
آیت : 24
وَٱلَّذِينَ فِيٓ أَمۡوَٰلِهِمۡ حَقّٞ مَّعۡلُومٞ
और जिनके धन में एक निश्चित भाग है।
آیت : 25
لِّلسَّآئِلِ وَٱلۡمَحۡرُومِ
माँगने वाले तथा वंचित[6] के लिए।
6. अर्थात जो न माँगने के कारण वंचित रह जाता है।
آیت : 26
وَٱلَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوۡمِ ٱلدِّينِ
और जो बदले के दिन को सत्य मानते हैं।
آیت : 27
وَٱلَّذِينَ هُم مِّنۡ عَذَابِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ
और जो अपने पालनहार की यातना से डरने वाले हैं।
آیت : 28
إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمۡ غَيۡرُ مَأۡمُونٖ
निश्चय उनके पालनहार की यातना ऐसी चीज़ है, जिससे निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता।
آیت : 29
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِفُرُوجِهِمۡ حَٰفِظُونَ
और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते हैं।
آیت : 30
إِلَّا عَلَىٰٓ أَزۡوَٰجِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَيۡرُ مَلُومِينَ
सिवाय अपनी पत्नियों से या अपने स्वामित्व में आई दासियों[7] से, तो निश्चय वे निंदनीय नहीं हैं।
7. इस्लाम में उसी दासी से संभोग उचित है जिसे सेनापति ने ग़नीमत के दूसरे धनों के समान किसी मुजाहिद के स्वामित्व में दे दिया हो। इससे पूर्व किसी बंदी स्त्री से संभोग पाप तथा व्यभिचार है। और उससे संभोग भी उस समय वैध है जब उसे एक बार मासिक धर्म आ जाए। अथवा गर्भवती हो, तो प्रसव के पश्चात् ही संभोग किया जा सकता है। इसी प्रकार जिसके स्वामित्व में आई हो, उसके सिवा और कोई उससे संभोग नहीं कर सकता।
آیت : 31
فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَآءَ ذَٰلِكَ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ
फिर जो इसके अलावा कुछ और चाहे, तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करने वाले हैं।
آیت : 32
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِأَمَٰنَٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَٰعُونَ
और जो अपनी अमानतों तथा अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखने वाले हैं।
آیت : 33
وَٱلَّذِينَ هُم بِشَهَٰدَٰتِهِمۡ قَآئِمُونَ
और जो अपनी गवाहियों पर क़ायम रहने वाले हैं।
آیت : 34
وَٱلَّذِينَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَاتِهِمۡ يُحَافِظُونَ
तथा जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते हैं।
آیت : 35
أُوْلَٰٓئِكَ فِي جَنَّٰتٖ مُّكۡرَمُونَ
वही लोग जन्नतों में सम्मानित होंगे।
آیت : 36
فَمَالِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ قِبَلَكَ مُهۡطِعِينَ
फिर इन काफ़िरों को क्या हुआ है कि वे आपकी ओर दौड़े चले आ रहे है?
آیت : 37
عَنِ ٱلۡيَمِينِ وَعَنِ ٱلشِّمَالِ عِزِينَ
दाएँ से और बाएँ से समूह के समूह।[8]
8. अर्थात जब आप क़ुरआन सुनाते हैं, तो उसका उपहास करने के लिए समूहों में होकर आ जाते हैं। और इनका दावा यह है कि स्वर्ग में जाएँगे।
آیت : 38
أَيَطۡمَعُ كُلُّ ٱمۡرِيٕٖ مِّنۡهُمۡ أَن يُدۡخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٖ
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति यह लालच रखता है कि उसे नेमत वाली जन्नत में दाखिल किया जाएगा?
آیت : 39
كَلَّآۖ إِنَّا خَلَقۡنَٰهُم مِّمَّا يَعۡلَمُونَ
कदापि नहीं, निश्चय हमने उन्हें उस चीज़[9] से पैदा किया है, जिसे वे जानते हैं।
9. अर्थात हीन जल (वीर्य) से। फिर भी घमंड करते हैं, तथा अल्लाह और उसके रसूल को नहीं मानते।

آیت : 40
فَلَآ أُقۡسِمُ بِرَبِّ ٱلۡمَشَٰرِقِ وَٱلۡمَغَٰرِبِ إِنَّا لَقَٰدِرُونَ
तो मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों (सूर्योदय के स्थानों) तथा पश्चिमों (सूर्यास्त के स्थानों) के रब की! निश्चय हम सक्षम हैं।
آیت : 41
عَلَىٰٓ أَن نُّبَدِّلَ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَمَا نَحۡنُ بِمَسۡبُوقِينَ
कि उनके स्थान पर उनसे उत्तम लोग ले आएँ तथा हम विवश नहीं हैं।
آیت : 42
فَذَرۡهُمۡ يَخُوضُواْ وَيَلۡعَبُواْ حَتَّىٰ يُلَٰقُواْ يَوۡمَهُمُ ٱلَّذِي يُوعَدُونَ
अतः आप उन्हें छोड़ दें कि वे व्यर्थ की बातों में लगे रहें तथा खेलते रहें, यहाँ तक कि उनका सामना उनके उस दिन से हो जाए, जिसका उनसे वादा किया जाता है।
آیت : 43
يَوۡمَ يَخۡرُجُونَ مِنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ سِرَاعٗا كَأَنَّهُمۡ إِلَىٰ نُصُبٖ يُوفِضُونَ
जिस दिन वे क़ब्रों से तेज़ी से बाहर निकलेंगे, जैसे कि वे किसी निशान की ओर[10] दौड़े जा रहे हैं।
10. या उनके थानों की ओर। क्योंकि संसार में वे सूर्योदय के समय बड़ी तीव्र गति से अपनी मूर्तियों की ओर दौड़ते थे।
آیت : 44
خَٰشِعَةً أَبۡصَٰرُهُمۡ تَرۡهَقُهُمۡ ذِلَّةٞۚ ذَٰلِكَ ٱلۡيَوۡمُ ٱلَّذِي كَانُواْ يُوعَدُونَ
उनकी निगाहें झुकी होंगी, उनपर अपमान छाया होगा। यही वह दिन है जिसका उनसे वादा किया[11] जाता था।
11. अर्थात रसूलों की ज़बानी तथा आकाशीय पुस्तकों के माध्यम से।
په کامیابۍ سره ولیږل شو