クルアーンの対訳

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سورة المجادلة - सूरह अल-मुजादला

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節 : 1
قَدۡ سَمِعَ ٱللَّهُ قَوۡلَ ٱلَّتِي تُجَٰدِلُكَ فِي زَوۡجِهَا وَتَشۡتَكِيٓ إِلَى ٱللَّهِ وَٱللَّهُ يَسۡمَعُ تَحَاوُرَكُمَآۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعُۢ بَصِيرٌ
निश्चय अल्लाह ने उस स्त्री की बात सुन ली, जो (ऐ रसूल) आपसे अपने पति के बारे में झगड़ रही थी तथा अल्लाह से शिकायत कर रही थी और अल्लाह तुम दोनों का वार्तालाप सुन रहा था। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।
節 : 2
ٱلَّذِينَ يُظَٰهِرُونَ مِنكُم مِّن نِّسَآئِهِم مَّا هُنَّ أُمَّهَٰتِهِمۡۖ إِنۡ أُمَّهَٰتُهُمۡ إِلَّا ٱلَّٰٓـِٔي وَلَدۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَيَقُولُونَ مُنكَرٗا مِّنَ ٱلۡقَوۡلِ وَزُورٗاۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٞ
तुममें से जो लोग अपनी पत्नियों से ज़िहार[1] करते हैं, वे उनकी माएँ नहीं हैं। उनकी माएँ तो वही हैं, जिन्होंने उन्हें जन्म दिया है। निःसंदेह वे निश्चित रूप से एक अनुचित बात और झूठ कहते हैं। और निःसंदेह अल्लाह निश्चित रूप से बहुत माफ़ करने वाला, अत्यंत क्षमाशील है।
1. ज़िहार का अर्थ है पति का अपनी पत्नी से यह कहना कि तू मुझ पर मेरी माँ की पीठ के समान है। इस्लाम से पूर्व अरब समाज में यह कुरीति थी कि पति अपनी पत्नी से यह कह देता तो पत्नी को तलाक़ हो जाती थी। और सदा के लिए पति से विलग हो जाती थी। इसका नाम 'ज़िहार' था। इस्लाम में एक स्त्री जिस का नाम ख़ौला (रज़ियल्लाहु अन्हा) है उससे उसके पति औस पुत्र सामित (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ज़िहार कर लिया। ख़ौला (रज़ियल्लाहु अन्हा) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आई। और आपसे इस विषय में झगड़ने लगी। उसपर ये आयतें उतरीं। (सह़ीह़ अबूदाऊद : 2214)। आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहा : मैं उसकी बात नहीं सुन सकी। और अल्लाह ने सुन ली। (इब्ने माजा : 156, यह ह़दीस सह़ीह़ है।)
節 : 3
وَٱلَّذِينَ يُظَٰهِرُونَ مِن نِّسَآئِهِمۡ ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا قَالُواْ فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مِّن قَبۡلِ أَن يَتَمَآسَّاۚ ذَٰلِكُمۡ تُوعَظُونَ بِهِۦۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
और जो लोग अपनी पत्नियों से ज़िहार कर लेते हैं, फिर अपनी कही हुई बात वापस लेना चाहते हैं, तो (उसका कफ़्फ़ारा यह है कि उन्हें) एक-दूसरे को हाथ लगाने[2] से पहले एक दास मुक्त करना है। यह है वह (हुक्म) जिसकी तुम्हें शिक्षा दी जाती है और अल्लाह उससे जो तुम करते हो, भली-भाँति अवगत है।
2. हाथ लगाने का अर्थ संभोग करना है। अर्थात संभोग से पहले प्रायश्चित चुका दे।
節 : 4
فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ شَهۡرَيۡنِ مُتَتَابِعَيۡنِ مِن قَبۡلِ أَن يَتَمَآسَّاۖ فَمَن لَّمۡ يَسۡتَطِعۡ فَإِطۡعَامُ سِتِّينَ مِسۡكِينٗاۚ ذَٰلِكَ لِتُؤۡمِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۚ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِۗ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ
फिर जो व्यक्ति (दास) न पाए, तो उसे एक-दूसरे को हाथ लगाने से पहले निरंतर दो महीने रोज़े रखना है। फिर जो इसका (भी) सामर्थ्य न रखे, उसे साठ निर्धनों को भोजन कराना है। यह (आदेश) इसलिए है, ताकि तुम अल्लाह तथा उसके रसूल पर ईमान लाओ। और ये अल्लाह की सीमाएँ हैं तथा काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना है।
節 : 5
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُحَآدُّونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ كُبِتُواْ كَمَا كُبِتَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ وَقَدۡ أَنزَلۡنَآ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖۚ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٞ مُّهِينٞ
निश्चय जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं, वे अपमानित किए जाएँगे, जैसे उनसे पहले के लोग अपमानित किए गए। और हमने स्पष्ट आयतें उतार दी हैं। और काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना है।
節 : 6
يَوۡمَ يَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ جَمِيعٗا فَيُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوٓاْۚ أَحۡصَىٰهُ ٱللَّهُ وَنَسُوهُۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ
जिस दिन अल्लाह उन सब को जीवित कर उठाएगा, फिर उन्हें बताएगा जो उन्होंने किया। अल्लाह ने उसे संरक्षित कर रखा है और वे उसे भूल गए। और अल्लाह प्रत्येक वस्तु पर गवाह है।

節 : 7
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۖ مَا يَكُونُ مِن نَّجۡوَىٰ ثَلَٰثَةٍ إِلَّا هُوَ رَابِعُهُمۡ وَلَا خَمۡسَةٍ إِلَّا هُوَ سَادِسُهُمۡ وَلَآ أَدۡنَىٰ مِن ذَٰلِكَ وَلَآ أَكۡثَرَ إِلَّا هُوَ مَعَهُمۡ أَيۡنَ مَا كَانُواْۖ ثُمَّ يُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُواْ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٌ
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है? तीन व्यक्तियों की कोई कानाफूसी नहीं होती, परंतु वह (अल्लाह) उनका चौथा होता है। और न पाँच (आदमियों) की, परंतु वह उनका छठा होता है। और न इससे कम और न अधिक की, परंतु वह उनके साथ होता[3] है, वे जहाँ भी हों। फिर वह क़ियामत के दिन उन्हें उनके कर्मों से सूचित कर देगा। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक वस्तु से भली-भाँति अवगत है।
3. अर्थात जानता और सुनता है।
節 : 8
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ نُهُواْ عَنِ ٱلنَّجۡوَىٰ ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا نُهُواْ عَنۡهُ وَيَتَنَٰجَوۡنَ بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَمَعۡصِيَتِ ٱلرَّسُولِۖ وَإِذَا جَآءُوكَ حَيَّوۡكَ بِمَا لَمۡ يُحَيِّكَ بِهِ ٱللَّهُ وَيَقُولُونَ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ لَوۡلَا يُعَذِّبُنَا ٱللَّهُ بِمَا نَقُولُۚ حَسۡبُهُمۡ جَهَنَّمُ يَصۡلَوۡنَهَاۖ فَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें कानाफूसी[4] से रोका गया, फिर वे वही करते हैं, जिससे उन्हें मना किया गया था? तथा आपस में पाप, अत्याचार और रसूल की अवज्ञा की कानाफूसी करते हैं। और जब आपके पास आते हैं, तो आपको (ऐसे शब्दों के साथ) सलाम करते हैं, जिनके साथ अल्लाह ने आपको सलाम नहीं किया। तथा अपने दिलों में कहते हैं : हम जो कुछ कहते हैं, उसपर अल्लाह हमें यातना[5] क्यों नहीं देता? उनके लिए जहन्नम ही काफ़ी है, जिसमें वे दाखिल होंगे। वह बहुत बुरा ठिकाना है।
4. इनसे अभिप्राय मुनाफ़िक़ हैं। क्योंकि उनकी कानाफूसी बुराई के लिए होती थी। (देखिए : सूरतुन-निसा, आयत : 114)। 5. मुनाफ़िक़ और यहूदी जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सेवा में आते तो "अस्सलामो अलैकुम" (अनुवाद : आप पर सलाम और शान्ति हो) की जगह "अस्सामो अलैकुम" (अनुवाद : आप पर मौत आए।) कहते थे। और अपने मन में यह सोचते थे कि यदि आप अल्लाह के सच्चे रसूल होते, तो हमारे इस दुराचार के कारण हम पर यातना आ जाती। और जब कोई यातना नहीं आई, तो आप अल्लाह के रसूल नहीं हो सकते। ह़दीस में है कि यहूदी लोग जब तुममें से किसी को सलाम करते हैं, तो "अस्सामो अलैका" कहते हैं, तो तुम "व अलैका" कहा करो। अर्थात और तुम पर भी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6257, सह़ीह़ मुस्लिम : 2164)।
節 : 9
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا تَنَٰجَيۡتُمۡ فَلَا تَتَنَٰجَوۡاْ بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَمَعۡصِيَتِ ٱلرَّسُولِ وَتَنَٰجَوۡاْ بِٱلۡبِرِّ وَٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِيٓ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! जब तुम कानाफूसी करो, तो पाप तथा अत्याचार एवं रसूल की अवज्ञा की कानाफूसी न करो, बल्कि नेकी तथा तक़वा की कानाफूसी करो, और अल्लाह से डरते रहो, जिसकी ओर तुम एकत्रित किए जाओगे।
節 : 10
إِنَّمَا ٱلنَّجۡوَىٰ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ لِيَحۡزُنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَلَيۡسَ بِضَآرِّهِمۡ شَيۡـًٔا إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
यह कानाफूसी तो मात्र शैतान की ओर से है, ताकि वह ईमान वालों को दुखी[6] करे, हालाँकि वह अल्लाह की अनुमति के बिना उन्हें कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा सकता। और ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए।
6. ह़दीस में है कि जब तुम तीन एक साथ रहो, तो दो आपस में कानाफूसी न करें। क्योंकि इससे तीसरे को दुःख होता है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6290, सह़ीह़ मुस्लिम : 2184)
節 : 11
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا قِيلَ لَكُمۡ تَفَسَّحُواْ فِي ٱلۡمَجَٰلِسِ فَٱفۡسَحُواْ يَفۡسَحِ ٱللَّهُ لَكُمۡۖ وَإِذَا قِيلَ ٱنشُزُواْ فَٱنشُزُواْ يَرۡفَعِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنكُمۡ وَٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ دَرَجَٰتٖۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
ऐ ईमान वालो! जब तुमसे कहा जाए कि सभाओं में जगह कुशादा[7] कर दो, तो कुशादा कर दिया करो। अल्लाह तुम्हारे लिए विस्तार पैदा करेगा। तथा जब कहा जाए कि उठ जाओ, तो उठ जाया करो। अल्लाह तुममें से उन लोगों के दर्जे ऊँचे[8] कर देगा, जो ईमान लाए तथा जिन्हें ज्ञान प्रदान किया गया है। तथा तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति अवगत है।
7. भावार्थ यह है कि कोई आए, तो उसे भी खिसककर और आपस में सुकड़ कर जगह दो। 8. ह़दीस में है कि जो अल्लाह के लिए झुकता और अच्छा व्यवहार चयन करता है तो अल्लाह उसे ऊँचा कर देता है। (सह़ीह़ मुस्लिम : 2588)

節 : 12
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا نَٰجَيۡتُمُ ٱلرَّسُولَ فَقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيۡ نَجۡوَىٰكُمۡ صَدَقَةٗۚ ذَٰلِكَ خَيۡرٞ لَّكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ فَإِن لَّمۡ تَجِدُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
ऐ ईमान वालो! जब तुम रसूल से गुप्त रूप से बात करो, तो गुप्त रूप से बात करने से पहले कुछ दान करो।[9] यह तुम्हारे लिए उत्तम तथा अधिक पवित्र है। फिर यदि तुम (दान के लिए कुछ) न पाओ, तो अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
9. प्रत्येक मुसलमान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से एकांत में बात करना चाहता था। जिससे आपको परेशानी होती थी। इस लिए यह आदेश दिया गया।
節 : 13
ءَأَشۡفَقۡتُمۡ أَن تُقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيۡ نَجۡوَىٰكُمۡ صَدَقَٰتٖۚ فَإِذۡ لَمۡ تَفۡعَلُواْ وَتَابَ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمۡ فَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَٱللَّهُ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ
क्या तुम इससे डर गए कि अपनी गुप्त रूप से बात-चीत से पहले कुछ दान करो? सो, जब तुमने ऐसा नहीं किया और अल्लाह ने तुम्हें क्षमा कर दिया, तो नमाज़ कायम करो तथा ज़कात दो और अल्लाह तथा उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो और तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है।
節 : 14
۞ أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ تَوَلَّوۡاْ قَوۡمًا غَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مَّا هُم مِّنكُمۡ وَلَا مِنۡهُمۡ وَيَحۡلِفُونَ عَلَى ٱلۡكَذِبِ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
क्या आपने उन लोगों को नहीं देखा[10], जिन्होंने उस समुदाय को मित्र बना लिया, जिसपर अल्लाह क्रोधित हुआ? वे न तुममें से हैं और न उनमें से। और वे जान-बूझकर झूठी बात पर क़समें खाते हैं।
10. इससे संकेत मुनाफ़िक़ों की ओर है जिन्होंने यहूदियों को अपना मित्र बना रखा था।
節 : 15
أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمۡ عَذَابٗا شَدِيدًاۖ إِنَّهُمۡ سَآءَ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
अल्लाह ने उनके लिए बड़ी कठोर यातना तैयार कर रखी है। निःसंदेह वह बहुत बुरा है, जो वे करते रहे हैं।
節 : 16
ٱتَّخَذُوٓاْ أَيۡمَٰنَهُمۡ جُنَّةٗ فَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ فَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ
उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना लिया। फिर (लोगों को) अल्लाह के मार्ग से रोका। अतः उनके लिए अपमानकारी यातना है।
節 : 17
لَّن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـًٔاۚ أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
उनके धन और उनकी संतान अल्लाह के समक्ष हरगिज़ उनके किसी काम न आएँगे। ये लोग जहन्नम के वासी हैं। वे उसमें हमेशा रहेंगे।
節 : 18
يَوۡمَ يَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ جَمِيعٗا فَيَحۡلِفُونَ لَهُۥ كَمَا يَحۡلِفُونَ لَكُمۡ وَيَحۡسَبُونَ أَنَّهُمۡ عَلَىٰ شَيۡءٍۚ أَلَآ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡكَٰذِبُونَ
जिस दिन अल्लाह उन सब को उठाएगा, तो वे उसके सामने क़समें खाएँगे, जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं। और वे समझेंगे कि वे किसी चीज़ (आधार)[11] पर (क़ायम) हैं। सुन लो! निश्चय वही झूठे हैं।
11. अर्थात उन्हें अपनी क़सम का कुछ लाभ मिल जाएगा जैसे दुनिया में मिलता रहा।
節 : 19
ٱسۡتَحۡوَذَ عَلَيۡهِمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ فَأَنسَىٰهُمۡ ذِكۡرَ ٱللَّهِۚ أُوْلَٰٓئِكَ حِزۡبُ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ أَلَآ إِنَّ حِزۡبَ ٱلشَّيۡطَٰنِ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
उनपर शैतान हावी[12] हो गया है और उसने उन्हें अल्लाह की याद भुला दी है। ये लोग शैतान का समूह हैं। सुन लो! निःसंदेह शैतान का समूह ही घाटा उठाने वाला है।
12. अर्थात उनको अपने नियंत्रण में ले रखा है।
節 : 20
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُحَآدُّونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ أُوْلَٰٓئِكَ فِي ٱلۡأَذَلِّينَ
निःसंदेह जो लोग अल्लाह तथा उसके रसूल का विरोध करते हैं, वही सबसे अधिक अपमानित लोगों में से हैं।
節 : 21
كَتَبَ ٱللَّهُ لَأَغۡلِبَنَّ أَنَا۠ وَرُسُلِيٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٞ
अल्लाह ने लिख दिया है कि अवश्य मैं और मेरे रसूल ही ग़ालिब (विजयी)[13] रहेंगे। निःसंदेह अल्लाह अति शक्तिशाली,अत्यंत प्रभुत्वशाली है।
13. (देखिए : सूरत मूमिन, आयत : 51-52)

節 : 22
لَّا تَجِدُ قَوۡمٗا يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ يُوَآدُّونَ مَنۡ حَآدَّ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَوۡ كَانُوٓاْ ءَابَآءَهُمۡ أَوۡ أَبۡنَآءَهُمۡ أَوۡ إِخۡوَٰنَهُمۡ أَوۡ عَشِيرَتَهُمۡۚ أُوْلَٰٓئِكَ كَتَبَ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَأَيَّدَهُم بِرُوحٖ مِّنۡهُۖ وَيُدۡخِلُهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ رَضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُواْ عَنۡهُۚ أُوْلَٰٓئِكَ حِزۡبُ ٱللَّهِۚ أَلَآ إِنَّ حِزۡبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ
आप उन लोगों को जो अल्लाह तथा अंतिम दिवस पर ईमान रखते हैं, ऐसा नहीं पाएँगे कि वे उन लोगों से दोस्ती रखते हों, जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया, चाहे वे उनके पिता या उनके पुत्र या उनके भाई या उनके परिजन[14] हों। वही लोग हैं, जिनके दिलों में उसने ईमान लिख दिया है और अपनी ओर से एक आत्मा के साथ उन्हें शक्ति प्रदान की है। तथा उन्हें ऐसी जन्नतों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे से नहरें बहती होंगी, वे उनके अंदर हमेशा रहेंगे। अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे उससे प्रसन्न हो गए। ये लोग अल्लाह का दल हैं। सुन लो, निःसंदेह अल्लाह का दल ही सफल होने वाला है।
14. इस आयत में इस बात का वर्णन किया गया है कि ईमान, और काफ़िर जो इस्लाम और मुसलमानों के जानी दुश्मन हैं उनसे सच्ची मैत्री करना एकत्र नहीं हो सकते। अतः जो इस्लाम और इस्लाम के विरोधियों से एकसाथ सच्चे संबंध रखते हैं, उनका ईमान सत्य नहीं है।
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