節 :
5
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ صَبَرُواْ حَتَّىٰ تَخۡرُجَ إِلَيۡهِمۡ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
और यदि वे धैर्य[3] रखते, यहाँ तक कि आप खुद ही उनकी ओर निकलकर आते, तो निश्चय यह उनके लिए बेहतर होता। तथा अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
節 :
6
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن جَآءَكُمۡ فَاسِقُۢ بِنَبَإٖ فَتَبَيَّنُوٓاْ أَن تُصِيبُواْ قَوۡمَۢا بِجَهَٰلَةٖ فَتُصۡبِحُواْ عَلَىٰ مَا فَعَلۡتُمۡ نَٰدِمِينَ
ऐ ईमान वालो! यदि कोई दुराचारी (अवज्ञाकारी)[4] तुम्हारे पास कोई सूचना लेकर आए, तो उसकी अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर लिया करो। ऐसा न हो कि तुम किसी समुदाय को अज्ञानता के कारण हानि पहुँचा दो, फिर अपने किए पर पछताओ।
節 :
7
وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ فِيكُمۡ رَسُولَ ٱللَّهِۚ لَوۡ يُطِيعُكُمۡ فِي كَثِيرٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ لَعَنِتُّمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ حَبَّبَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَزَيَّنَهُۥ فِي قُلُوبِكُمۡ وَكَرَّهَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡكُفۡرَ وَٱلۡفُسُوقَ وَٱلۡعِصۡيَانَۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلرَّٰشِدُونَ
तथा जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह के रसूल मौजूद हैं। यदि वह बहुत-से विषयों में तुम्हारी बात मान लें, तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। परंतु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुशोभित कर दिया तथा तुम्हारे लिए कुफ़्र और पाप और अवज्ञा को अप्रिय बना दिया, यही लोग हिदायत पर चलने वाले हैं।
節 :
8
فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَنِعۡمَةٗۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ
अल्लाह की कृपा और अनुग्रह के कारण और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
節 :
9
وَإِن طَآئِفَتَانِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱقۡتَتَلُواْ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَاۖ فَإِنۢ بَغَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا عَلَى ٱلۡأُخۡرَىٰ فَقَٰتِلُواْ ٱلَّتِي تَبۡغِي حَتَّىٰ تَفِيٓءَ إِلَىٰٓ أَمۡرِ ٱللَّهِۚ فَإِن فَآءَتۡ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَا بِٱلۡعَدۡلِ وَأَقۡسِطُوٓاْۖ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ
और यदि ईमान वालों के दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें, तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि दोनों में से एक, दूसरे पर अत्याचार करे, तो उस गिरोह से लड़ो, जो अत्याचार करता है, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट[5] आए, तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, तथा न्याय करो। निःसंदेह अल्लाह न्याय करने वालों से प्रेम करता है।
節 :
10
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِخۡوَةٞ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَ أَخَوَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ
निःसंदेह ईमान वाले तो भाई ही हैं। अतः अपने दो भाइयों के बीच सुलह करा दो। तथा अल्लाह से डरो, ताकि तुम पर दया की जाए।
節 :
11
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَسۡخَرۡ قَوۡمٞ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُونُواْ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَآءٞ مِّن نِّسَآءٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُواْ بِٱلۡأَلۡقَٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن لَّمۡ يَتُبۡ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो![6] एक जाति दूसरी जाति का उपहास न करे, हो सकता है कि वे उनसे बेहतर हों। और न कोई स्त्रियाँ अन्य स्त्रियों की हँसी उड़ाएँ, हो सकता है कि वे उनसे अच्छी हों। और न अपनों पर दोष लगाओ, और न एक-दूसरे को बुरे नामों से पुकारो। ईमान के बाद अवज्ञाकारी होना बुरा नाम है। और जिसने तौबा न की, तो वही लोग अत्याचारी हैं।