ترجمهٔ معانی قرآن کریم

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سورة عبس - सूरह अ-ब-स

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آیه : 1
عَبَسَ وَتَوَلَّىٰٓ
उस (नबी) ने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया।
آیه : 2
أَن جَآءَهُ ٱلۡأَعۡمَىٰ
इस कारण कि उनके पास अंधा आया।
آیه : 3
وَمَا يُدۡرِيكَ لَعَلَّهُۥ يَزَّكَّىٰٓ
और आपको क्या मालूम शायद वह पवित्रता प्राप्त कर ले।
آیه : 4
أَوۡ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ ٱلذِّكۡرَىٰٓ
या नसीहत ग्रहण करे, तो वह नसीहत उसे लाभ दे।
آیه : 5
أَمَّا مَنِ ٱسۡتَغۡنَىٰ
लेकिन जो बेपरवाह हो गया।
آیه : 6
فَأَنتَ لَهُۥ تَصَدَّىٰ
तो आप उसके पीछे पड़ रहे हैं।
آیه : 7
وَمَا عَلَيۡكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ
हालाँकि आपपर कोई दोष नहीं कि वह पवित्रता ग्रहण नहीं करता।
آیه : 8
وَأَمَّا مَن جَآءَكَ يَسۡعَىٰ
लेकिन जो व्यक्ति आपके पास दौड़ता हुआ आया।
آیه : 9
وَهُوَ يَخۡشَىٰ
और वह डर (भी) रहा है।
آیه : 10
فَأَنتَ عَنۡهُ تَلَهَّىٰ
तो आप उसकी ओर ध्यान नहीं देते।[1]
1. (1-10) भावार्थ यह है कि सत्य के प्रचारक का यह कर्तव्य है कि जो सत्य की खोज में हो, भले ही वह दरिद्र हो, उसी के सुधार पर ध्यान दे। और जो अभिमान के कारण सत्य की परवाह नहीं करते उनके पीछे समय न गवाँए। आपका यह दायित्व भी नहीं है कि उन्हें अपनी बात मनवा दें।
آیه : 11
كَلَّآ إِنَّهَا تَذۡكِرَةٞ
ऐसा हरगिज़ नहीं चाहिए, यह (क़ुरआन) तो एक उपदेश है।
آیه : 12
فَمَن شَآءَ ذَكَرَهُۥ
अतः जो चाहे, उसे याद करे।
آیه : 13
فِي صُحُفٖ مُّكَرَّمَةٖ
(यह क़ुरआन) सम्मानित सहीफ़ों (ग्रंथों) में है।
آیه : 14
مَّرۡفُوعَةٖ مُّطَهَّرَةِۭ
जो उच्च स्थान वाले तथा पवित्र हैं।
آیه : 15
بِأَيۡدِي سَفَرَةٖ
ऐसे लिखने वालों (फ़रिश्तों) के हाथों में हैं।
آیه : 16
كِرَامِۭ بَرَرَةٖ
जो माननीय और नेक हैं।[2]
2. (11-16) इनमें क़ुरआन की महानता को बताया गया है कि यह एक स्मृति (याद दहानी) है। किसी पर थोपने के लिए नहीं आया है। बल्कि वह तो फ़रिश्तों के हाथों में स्वर्ग में एक पवित्र शास्त्र के अंदर सुरक्षित है। और वहीं से वह (क़ुरआन) इस संसार में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा जा रहा है।
آیه : 17
قُتِلَ ٱلۡإِنسَٰنُ مَآ أَكۡفَرَهُۥ
सर्वनाश हो मनुष्य का, वह कितना कृतघ्न (नाशुक्रा) है।
آیه : 18
مِنۡ أَيِّ شَيۡءٍ خَلَقَهُۥ
(अल्लाह ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया?
آیه : 19
مِن نُّطۡفَةٍ خَلَقَهُۥ فَقَدَّرَهُۥ
एक नुत्फ़े (वीर्य) से उसे पैदा किया, फिर विभिन्न चरणों में उसकी रचना की।
آیه : 20
ثُمَّ ٱلسَّبِيلَ يَسَّرَهُۥ
फिर उसके लिए रास्ता आसान कर दिया।
آیه : 21
ثُمَّ أَمَاتَهُۥ فَأَقۡبَرَهُۥ
फिर उसे मृत्यु दी, फिर उसे क़ब्र में रखवाया।
آیه : 22
ثُمَّ إِذَا شَآءَ أَنشَرَهُۥ
फिर जब वह चाहेगा, उसे उठाएगा।
آیه : 23
كَلَّا لَمَّا يَقۡضِ مَآ أَمَرَهُۥ
हरगिज़ नहीं, अभी तक उसने उसे पूरा नहीं किया, जिसका अल्लाह ने उसे आदेश दिया था।[3]
3. (17-23) तक विश्वासहीनों पर धिक्कार है कि यदि वे अपने अस्तित्व पर विचार करें कि हमने कितनी तुच्छ वीर्य की बूँद से उसकी रचना की तथा अपनी दया से उसे चेतना और समझ दी। परंतु इन सब उपकारों को भूलकर कृतघ्न बना हुआ है, और उपासना अन्य की करता है।
آیه : 24
فَلۡيَنظُرِ ٱلۡإِنسَٰنُ إِلَىٰ طَعَامِهِۦٓ
अतः इनसान को चाहिए कि अपने भोजन को देखे।
آیه : 25
أَنَّا صَبَبۡنَا ٱلۡمَآءَ صَبّٗا
कि हमने ख़ूब पानी बरसाया।
آیه : 26
ثُمَّ شَقَقۡنَا ٱلۡأَرۡضَ شَقّٗا
फिर हमने धरती को विशेष रूप से फाड़ा।
آیه : 27
فَأَنۢبَتۡنَا فِيهَا حَبّٗا
फिर हमने उसमें अनाज उगाया।
آیه : 28
وَعِنَبٗا وَقَضۡبٗا
तथा अंगूर और (मवेशियों का) चारा।
آیه : 29
وَزَيۡتُونٗا وَنَخۡلٗا
तथा ज़ैतून और खजूर के पेड़।
آیه : 30
وَحَدَآئِقَ غُلۡبٗا
तथा घने बाग़।
آیه : 31
وَفَٰكِهَةٗ وَأَبّٗا
तथा फल और चारा।
آیه : 32
مَّتَٰعٗا لَّكُمۡ وَلِأَنۡعَٰمِكُمۡ
तुम्हारे लिए तथा तुम्हारे पशुओं के लिए जीवन-सामग्री के रूप में।[4]
4. (24-32) इन आयतों में इनसान के जीवन साधनों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो अल्लाह की अपार दया की परिचायक हैं। अतः जब सारी व्यवस्था वही करता है, तो फिर उसके इन उपकारों पर इनसान के लिए उचित था कि उसी की बात माने और उसी के आदेशों का पालन करे जो क़ुरआन के माध्यम से अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्म) द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है। (दावतुल क़ुरआन)
آیه : 33
فَإِذَا جَآءَتِ ٱلصَّآخَّةُ
तो जब कानों को बहरा कर देने वाली प्रचंड आवाज़ (क़ियामत) आ जाएगी।
آیه : 34
يَوۡمَ يَفِرُّ ٱلۡمَرۡءُ مِنۡ أَخِيهِ
जिस दिन इनसान अपने भाई से भागेगा।
آیه : 35
وَأُمِّهِۦ وَأَبِيهِ
तथा अपनी माता और अपने पिता (से)।
آیه : 36
وَصَٰحِبَتِهِۦ وَبَنِيهِ
तथा अपनी पत्नी और अपने बेटों से।
آیه : 37
لِكُلِّ ٱمۡرِيٕٖ مِّنۡهُمۡ يَوۡمَئِذٖ شَأۡنٞ يُغۡنِيهِ
उस दिन उनमें से प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी स्थिति होगी, जो उसे (दूसरों से) बेपरवाह कर देगी।
آیه : 38
وُجُوهٞ يَوۡمَئِذٖ مُّسۡفِرَةٞ
उस दिन कुछ चेहरे रौशन होंगे।
آیه : 39
ضَاحِكَةٞ مُّسۡتَبۡشِرَةٞ
हँसते हुए, प्रसन्न होंगे।
آیه : 40
وَوُجُوهٞ يَوۡمَئِذٍ عَلَيۡهَا غَبَرَةٞ
तथा कुछ चेहरों उस दिन धूल से ग्रस्त होंगे।
آیه : 41
تَرۡهَقُهَا قَتَرَةٌ
उनपर कालिमा छाई होगी।
آیه : 42
أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡكَفَرَةُ ٱلۡفَجَرَةُ
वही काफ़िर और कुकर्मी लोग हैं।[5]
5. (33-42) इन आयतों का भावार्थ यह है कि संसार में किसी पर कोई आपदा आती है, तो उसके अपने लोग उसकी सहायता और रक्षा करते हैं। परंतु प्रलय के दिन सबको अपनी-अपनी पड़ी होगी और उसके कर्म ही उसकी रक्षा करेंगे।
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