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سورة المرسلات - सूरह अल-मुरसलात

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آية : 1
وَٱلۡمُرۡسَلَٰتِ عُرۡفٗا
क़सम है उन हवाओं की जो निरंतर भेजी जाती हैं!
آية : 2
فَٱلۡعَٰصِفَٰتِ عَصۡفٗا
फिर बहुत तेज़ चलने वाली हवाओं की क़सम!
آية : 3
وَٱلنَّٰشِرَٰتِ نَشۡرٗا
और बादलों को फैलाने वाली हवाओं[1] की क़सम!
1. अर्थात जो हवाएँ अल्लाह के आदेशानुसार बादलों को फैलाती हैं।
آية : 4
فَٱلۡفَٰرِقَٰتِ فَرۡقٗا
फिर सत्य और असत्य के बीच अंतर करने वाली चीज़[2] के साथ उतरने वाले फ़रिश्तों की क़सम!
2. अर्थात सत्यासत्य तथा वैध और अवैध के बीच अंतर करने के लिए आदेश लाते हैं।
آية : 5
فَٱلۡمُلۡقِيَٰتِ ذِكۡرًا
फिर वह़्य[3] लेकर उतरने वाले फ़रिश्तों की क़सम!
3. अर्थात जो वह़्य (प्रकाशना) ग्रहण करके उसे रसूलों तक पहुँचाते हैं।
آية : 6
عُذۡرًا أَوۡ نُذۡرًا
उज़्र (बहाना) समाप्त करने या डराने[4] के लिए।
4. अर्थात ईमान लाने वालों के लिये क्षमा का वचन तथा काफ़िरों के लिये यातना की सूचना लाते हैं।
آية : 7
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَٰقِعٞ
निःसंदेह तुमसे जिस चीज़ का वादा किया जाता है, निश्चय वह होकर रहने वाली है।
آية : 8
فَإِذَا ٱلنُّجُومُ طُمِسَتۡ
फिर जब तारे मिटा दिए जाएँगे।
آية : 9
وَإِذَا ٱلسَّمَآءُ فُرِجَتۡ
और जब आकाश फाड़ दिया जाएगा।
آية : 10
وَإِذَا ٱلۡجِبَالُ نُسِفَتۡ
और जब पर्वत उड़ा दिए जाएँगे।
آية : 11
وَإِذَا ٱلرُّسُلُ أُقِّتَتۡ
और जब रसूलों को निर्धारित समय पर एकत्र किया जाएगा।[5]
5. उनके तथा उनके समुदायों के बीच निर्णय करने के लिए, और रसूल गवाही देंगे।
آية : 12
لِأَيِّ يَوۡمٍ أُجِّلَتۡ
किस दिन के लिए वे विलंबित किए गए हैं?
آية : 13
لِيَوۡمِ ٱلۡفَصۡلِ
निर्णय के दिन के लिए।
آية : 14
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ
और आपको किस चीज़ ने अवगत कराया कि निर्णय का दिन क्या है?
آية : 15
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 16
أَلَمۡ نُهۡلِكِ ٱلۡأَوَّلِينَ
क्या हमने पहलों को विनष्ट नहीं किया?
آية : 17
ثُمَّ نُتۡبِعُهُمُ ٱلۡأٓخِرِينَ
फिर हम उनके पीछे बाद वालों को भेजेंगे।[6]
6. अर्थात उन्हीं के समान यातना ग्रस्त कर देंगे।
آية : 18
كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ
हम अपराधियों के साथ ऐसा ही करते हैं।
آية : 19
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।

آية : 20
أَلَمۡ نَخۡلُقكُّم مِّن مَّآءٖ مَّهِينٖ
क्या हमने तुम्हें एक तुच्छ पानी से पैदा नहीं किया?
آية : 21
فَجَعَلۡنَٰهُ فِي قَرَارٖ مَّكِينٍ
फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठिकाने में रखा।
آية : 22
إِلَىٰ قَدَرٖ مَّعۡلُومٖ
एक ज्ञात अवधि तक।[7]
7. अर्थात गर्भ की अवधि तक।
آية : 23
فَقَدَرۡنَا فَنِعۡمَ ٱلۡقَٰدِرُونَ
फिर हमने अनुमान[8] लगाया, तो हम क्या ही अच्छा अनुमान लगाने वाले हैं।
8. अर्थात मानव शरीर की संरचना और उसके अंगों का।
آية : 24
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 25
أَلَمۡ نَجۡعَلِ ٱلۡأَرۡضَ كِفَاتًا
क्या हमने धरती को समेटने[9] वाली नहीं बनाया?
9. अर्थात जब तक लोग जीवित रहते हैं, तो उसके ऊपर रहते तथा बसते हैं और मरण के पश्चात उसी में चले जाते हैं।
آية : 26
أَحۡيَآءٗ وَأَمۡوَٰتٗا
जीवित और मृत लोगों को।
آية : 27
وَجَعَلۡنَا فِيهَا رَوَٰسِيَ شَٰمِخَٰتٖ وَأَسۡقَيۡنَٰكُم مَّآءٗ فُرَاتٗا
तथा हमने उसमें ऊँचे पर्वत बनाए और हमने तुम्हें मीठा पानी पिलाया।
آية : 28
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 29
ٱنطَلِقُوٓاْ إِلَىٰ مَا كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ
(कहा जाएगा :) उस चीज़ की ओर चलो, जिसे तुम झुठलाते थे।
آية : 30
ٱنطَلِقُوٓاْ إِلَىٰ ظِلّٖ ذِي ثَلَٰثِ شُعَبٖ
एक छाया[10] की ओर चलो, जो तीन शाखाओं वाली है।
10. छाया से अभिप्राय नरक के धुँवे की छाया है, जो तीन दिशाओं में फैली होगी।
آية : 31
لَّا ظَلِيلٖ وَلَا يُغۡنِي مِنَ ٱللَّهَبِ
जो न छाया देगी और न ज्वाला से बचाएगी।
آية : 32
إِنَّهَا تَرۡمِي بِشَرَرٖ كَٱلۡقَصۡرِ
निःसंदेह वह (आग) भवन के समान चिंगारियाँ फेंकेगी।
آية : 33
كَأَنَّهُۥ جِمَٰلَتٞ صُفۡرٞ
जैसे वे पीले ऊँट हों।
آية : 34
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 35
هَٰذَا يَوۡمُ لَا يَنطِقُونَ
यह वह दिन है कि वे बोल[11] नहीं सकेंगे।
11. अर्थात उनके विरुद्ध ऐसे तर्क प्रस्तुत कर दिए जाएँगे कि वे अवाक रह जाएँगे।
آية : 36
وَلَا يُؤۡذَنُ لَهُمۡ فَيَعۡتَذِرُونَ
और न उन्हें अनुमति दी जाएगी कि वे उज़्र (कारण) पेश करें।
آية : 37
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 38
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِۖ جَمَعۡنَٰكُمۡ وَٱلۡأَوَّلِينَ
यह निर्णय का दिन है। हमने तुम्हें और पहलों को एकत्र कर दिया है।
آية : 39
فَإِن كَانَ لَكُمۡ كَيۡدٞ فَكِيدُونِ
तो यदि तुम्हारे पास कोई चाल[12] हो, तो मेरे विरुद्ध चलो।
12. अर्थात मेरी पकड़ से बचने की।
آية : 40
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 41
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي ظِلَٰلٖ وَعُيُونٖ
निश्चय डरने वाले लोग छाँवों तथा स्रोतों में होंगे।
آية : 42
وَفَوَٰكِهَ مِمَّا يَشۡتَهُونَ
तथा फलों में, जिसमें से वे चाहेंगे।
آية : 43
كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِيٓـَٔۢا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
(तथा उनसे कहा जाएगा :) मज़े से खाओ और पियो, उसके बदले जो तुम किया करते थे।
آية : 44
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ
हम सदाचारियों को इसी तरह बदला प्रदान करते हैं।
آية : 45
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 46
كُلُواْ وَتَمَتَّعُواْ قَلِيلًا إِنَّكُم مُّجۡرِمُونَ
(ऐ झुठलाने वालो!) तुम खा लो तथा थोड़ा-सा[13] आनंद ले लो। निश्चय तुम अपराधी हो।
13. अर्थात सांसारिक जीवन में।
آية : 47
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 48
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱرۡكَعُواْ لَا يَرۡكَعُونَ
तथा जब उनसे कहा जाता है कि (अल्लाह के आगे) झुको, तो वे नहीं झुकते।
آية : 49
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ
उस दिन झुठलाने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
آية : 50
فَبِأَيِّ حَدِيثِۭ بَعۡدَهُۥ يُؤۡمِنُونَ
फिर इस (क़ुरआन) के बाद वे किस बात पर ईमान[14] लाएँगे?
14. अर्थात जब अल्लाह की अंतिम पुस्तक पर ईमान नहीं लाते, तो फिर कोई दूसरी पुस्तक नहीं हो सकती, जिस पर वे ईमान लाएँ। इसलिए कि अब और कोई पुस्तक आसमान से आने वाली नहीं है।
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