آية :
18
إِنَّهُۥ فَكَّرَ وَقَدَّرَ
निःसंदेह उसने सोच-विचार किया और बात बनाई।[5]
آية :
19
فَقُتِلَ كَيۡفَ قَدَّرَ
तो वह मारा जाए! उसने कैसी कैसी बात बनाई?
آية :
20
ثُمَّ قُتِلَ كَيۡفَ قَدَّرَ
फिर मारा जाए! उसने कैसी बात बनाई?
آية :
21
ثُمَّ نَظَرَ
फिर उसने देखा।
آية :
22
ثُمَّ عَبَسَ وَبَسَرَ
फिर उसने त्योरी चढ़ाई और मुँह बनाया।
آية :
23
ثُمَّ أَدۡبَرَ وَٱسۡتَكۡبَرَ
फिर उसने पीठ फेरी और घमंड किया।
آية :
24
فَقَالَ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ يُؤۡثَرُ
फिर उसने कहा : यह तो मात्र एक जादू है, जो (पहलों से) नक़ल (उद्धृत) किया जाता है।[6]
آية :
25
إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا قَوۡلُ ٱلۡبَشَرِ
यह तो मात्र मनुष्य[7] की वाणी है।
آية :
26
سَأُصۡلِيهِ سَقَرَ
मैं उसे शीघ्र ही 'सक़र' (जहन्नम) में झोंक दूँगा।
آية :
27
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا سَقَرُ
और आपको किस चीज़ ने अवगत कराया कि 'सक़र' (जहन्नम) क्या है?
آية :
28
لَا تُبۡقِي وَلَا تَذَرُ
वह न शेष रखेगी और न छोड़ेगी।
آية :
29
لَوَّاحَةٞ لِّلۡبَشَرِ
वह खाल को झुलस देने वाली है।
آية :
30
عَلَيۡهَا تِسۡعَةَ عَشَرَ
उसपर उन्नीस (फ़रिश्ते) नियुक्त हैं।
آية :
31
وَمَا جَعَلۡنَآ أَصۡحَٰبَ ٱلنَّارِ إِلَّا مَلَٰٓئِكَةٗۖ وَمَا جَعَلۡنَا عِدَّتَهُمۡ إِلَّا فِتۡنَةٗ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ لِيَسۡتَيۡقِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَيَزۡدَادَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِيمَٰنٗا وَلَا يَرۡتَابَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَلِيَقُولَ ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ وَٱلۡكَٰفِرُونَ مَاذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَٰذَا مَثَلٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَمَا يَعۡلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَۚ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكۡرَىٰ لِلۡبَشَرِ
और हमने जहन्नम के रक्षक फ़रिश्ते ही बनाए हैं और उनकी संख्या को काफ़िरों के लिए परीक्षण बनाया है। ताकि अह्ले किताब[8] विश्वास कर लें और ईमान वाले ईमान में आगे बढ़ जाएँ। और किताब वाले एवं ईमान वाले किसी संदेह में न पड़ें। और ताकि वे लोग जिनके दिलों में रोग है और वे लोग जो काफ़िर[9] हैं, यह कहें कि इस उदाहरण से अल्लाह का क्या तात्पर्य है? ऐसे ही, अल्लाह जिसे चाहता है गुमराह करता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। और आपके पालनहार की सेनाओं को उसके सिवा कोई नहीं जानता। और यह तो केवल मनुष्य के लिए उपदेश है।
آية :
32
كَلَّا وَٱلۡقَمَرِ
कदापि नहीं, क़सम है चाँद की!
آية :
33
وَٱلَّيۡلِ إِذۡ أَدۡبَرَ
तथा रात की, जब वह जाने लगे!
آية :
34
وَٱلصُّبۡحِ إِذَآ أَسۡفَرَ
और सुबह की, जब वह प्रकाशित हो जाए!
آية :
35
إِنَّهَا لَإِحۡدَى ٱلۡكُبَرِ
निःसंदेह वह (जहन्नम) निश्चय बहुत बड़ी चीज़ों[10] में से एक है।
آية :
36
نَذِيرٗا لِّلۡبَشَرِ
मनुष्य के लिए डराने वाली है।
آية :
37
لِمَن شَآءَ مِنكُمۡ أَن يَتَقَدَّمَ أَوۡ يَتَأَخَّرَ
तुम में से उसके लिए, जो आगे बढ़ना चाहे अथवा पीछे हटना चाहे।[11]
آية :
38
كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡ رَهِينَةٌ
प्रत्येक व्यक्ति उसके बदले जो उसने कमाया, गिरवी[12] रखा हुआ है।
آية :
39
إِلَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلۡيَمِينِ
सिवाय दाहिने वालों के।
آية :
40
فِي جَنَّٰتٖ يَتَسَآءَلُونَ
वे जन्नतों में एक-दूसरे से पूछेंगे।
آية :
41
عَنِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ
अपराधियों के बारे में।
آية :
42
مَا سَلَكَكُمۡ فِي سَقَرَ
तुम्हें किस चीज़ ने जहन्नम में डाला?
آية :
43
قَالُواْ لَمۡ نَكُ مِنَ ٱلۡمُصَلِّينَ
वे कहेंगे : हम नमाज़ पढ़ने वालों में से न थे।
آية :
44
وَلَمۡ نَكُ نُطۡعِمُ ٱلۡمِسۡكِينَ
और न हम निर्धन को खाना खिलाते थे।
آية :
45
وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ ٱلۡخَآئِضِينَ
और हम बेहूदा बहस करने वालों के साथ मिलकर व्यर्थ बहस किया करते थे।
آية :
46
وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوۡمِ ٱلدِّينِ
और हम बदले के दिन को झुठलाया करते थे।
آية :
47
حَتَّىٰٓ أَتَىٰنَا ٱلۡيَقِينُ
यहाँ तक कि मौत हमारे पास आ गई।